आत्म-परिचय
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(वंशपरिचय एवं पूर्वजपरिचय सहित ) – लेखक – पं० युधिष्ठिर मीमांसक। इसमें पं० युधिष्ठिर मीमांसक जी ने अपने पूर्वज, विशेष करके पिता गौरी लाल आचार्य के वैदिक धम के प्रचार-प्रसार में किए गए उन कार्यों का उल्लेख किया है, जिनके कारण इन्दौर राज्यप्रशासन उन्हें परेशान करता रहा। अन्त में स्वपरिचय दिया है । वस्तुत: यह ग्रन्थ किसी वंश या व्यक्तिविशेष का परिचय मात्र ही नहीं है। अपितु उस समय की आर्य समाजों, शिरोमणि सभाओं, सार्वदेशिक सभा तथा आर्य समाज की विविध संस्थाओं के इतिहास का महत्त्वपूर्ण अभिलेख है। इससे उस समय के आर्य समाज के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है।
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